- हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, इंस्पेक्टर को दी राहत
बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में कहा है कि आपराधिक मामला एवं विभागीय जांच एक साथ नहीं चल सकते। कोर्ट ने ऐसा कहते हुए पुलिस इन्सपेक्टर की विभागीय जांच पर स्थगन देकर याचिकाकर्ता को राहत दी है। दरअसल बिलासपुर निवासी राजेन्द्र यादव दुर्ग में पुलिस इन्सपेक्टर के पद पर पदस्थ हैं। उनकी पदस्थापना के दौरान दुर्ग निवासी एक महिला की शिकायत पर राजेन्द्र यादव के विरूद्ध पुलिस थाना अमलेश्वर जिला दुर्ग में एक आपराधिक मामला पंजीबद्ध किया गया और न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, भिलाई-3 के न्यायालय में चालान प्रस्तुत किया गया। इसके बाद पुलिस अधीक्षक, दुर्ग द्वारा समान आरोपों पर राजेन्द्र यादव के विरुद्ध आरोप पत्र जारी कर विभागीय जांच की कार्रवाई शुरू कर दी गई। इसके खिलाफ इन्सपेक्टर राजेन्द्र यादव ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की।
याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग है कि यदि किसी शासकीय कर्मचारी के विरूद्ध आपराधिक प्रकरण पंजीबद्ध किया गया है और संबंधित विभाग द्वारा समान आरोपों पर विभागीय जांच शुरू की गई है, साथ ही दोनों मामलों में गवाह भी समान है तो ऐसी स्थिति में आपराधिक मामले में अभियोजन गवाहों का बयान सर्वप्रथम लिया जाना चाहिए। यदि विभागीय जांच कार्रवाई में समस्त अभियोजन साक्षियों का कथन ले लिया जाता है तो इससे न्यायालय में चल रहे आपराधिक मामले पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जो प्राकृतिक न्याय के पूर्ण विरूद्ध है।
विभागीय जांच पर स्टे
बिलासपुर हाईकोर्ट ने रिट याचिका की सुनवाई के पश्चात याचिकाकर्ता पुलिस इंस्पेक्टर राजेन्द्र यादव के विरूद्ध चल रही विभागीय जांच कार्रवाही को दूषित पाते हुए विभागीय जांच कार्रवाई पर स्टे दिया है ।
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इधर, पति-पत्नी के संबंध बिगड़ने पर गर्भपात की अनुमति नहीं
पत्नी की याचिका खारिज
बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि सिर्फ पति-पत्नी के बीच संबंध बिगड़ने के आधार पर गर्भपात की अनुमति नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने महिला की याचिका खारिज करते हुए यह भी कहा कि भारत में अभी भी अबॉर्शन को अपराध की तरह माना जाता है। उल्लेखनीय है कि महिला ने अपने पति के साथ रिश्ते में आए तनाव के मद्देनजर गर्भपात की मांग करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। उसका कहना था कि इस हालत में वह बच्चे को जन्म देना नहीं चाहती। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि गर्भपात की अनुमति सिर्फ इस आधार पर नहीं दी जा सकती के पति-पत्नी के बीच संबंध बिगड़ गए हैं। अपने आदेश में जस्टिस पी सैम कोशी की सिंगल बेंच ने कहा है कि याचिकाकर्ता किसी यौन अपराध के चलते गर्भवती नहीं हुई हैं। वह एक शादीशुदा महिला है। याचिका में किए गए दावों के आधार पर गर्भपात कराने की मांग वाली याचिकाओं पर अगर कोर्ट विचार शुरू कर देगा, तो 1971 के इस एक्ट का उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। हाईकोर्ट ने कहा है कि जब तक यह जरूरी ना हो कि गर्भवती महिला का गर्भपात करना ही होगा, तब तक डॉक्टर भी अबॉर्शन से बचते हैं। दरअसल 29 वर्षीय महिला की शादी साल 2022 में हुई थी। इस बीच महिला ने गर्भधारण किया। कुछ समय बाद ही लेकिन पति- पत्नी के बीच रिश्ता बिगड़ने लगा। दोनों पक्षों में झगड़ा काफी बढ़ गया। इसी वजह से महिला ने गर्भपात कराने का फैसला ले लिया और इसके लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने लेकिन महिला के तर्कों को स्वीकार नहीं किया है।
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