गुजरात दंगा… आरोपियों की रिहाई के खिलाफ एसआईटी जाएगी हाईकोर्ट

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच टीम (एसआईटी) 2002 के नरोदा गाम दंगा मामले में हाल में सभी 67 आरोपियों को एक विशेष अदालत द्वारा बरी किये जाने के फैसले को गुजरात उच्च न्यायालय में चुनौती देगी। सूत्रों ने यह जानकारी दी। एसआईटी के मामलों पर सुनवाई से संबंधित विशेष न्यायाधीश एस.के. बक्शी की अहमदाबाद स्थित अदालत ने गुजरात की पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी सहित 67 आरोपियों को 20 अप्रैल को बरी कर दिया था। गोधरा कांड के बाद अहमदाबाद के नरोदा गाम इलाके में हुए दंगों के दौरान 11 लोगों की हत्या किये जाने के दो दशक बाद अदालत का यह फैसला आया था।

इससे पहले गुजरात की एक विशेष अदालत ने बृहस्पतिवार को 2002 के नरोदा गाम दंगों के मामले में गुजरात की पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी सहित सभी 67 आरोपियों को बरी कर दिया था। अहमदाबाद के नरोदा गाम में गोधरा मामले के बाद भड़के दंगों में मुस्लिम समुदाय के 11 सदस्यों के मारे जाने के दो दशक से अधिक समय बाद विशेष अदालत का यह फैसला आया था। पीड़ितों के परिवारों के एक वकील ने उस वक्त कहा था कि फैसले को गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जाएगी क्योंकि उन्हें न्याय से वंचित किया गया है, वहीं घटना के 21 साल बाद आए फैसले को आरोपियों और उनके रिश्तेदारों ने सच की जीत करार दिया था।

2002 का है मामला

अहमदाबाद स्थित विशेष जांच दल (एसआईटी) मामलों के विशेष न्यायाधीश एस के बक्शी की अदालत ने नरोदा गाम दंगों से जुड़े इस बड़े मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस की बोगी में आग लगाए जाने के बाद राज्यभर में दंगे भड़क गए थे। इस मामले की जांच उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल ने की थी। उल्लेखनीय है कि कोडनानी और बाबू पटेल ऊर्फ बाबू बजरंगी को अहमदाबाद के नरोदा पाटिया इलाके में गोधरा कांड के बाद 2002 में हुए दंगों से संबंधित मामले में एसआईटी अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। उच्च न्यायालय ने बाद में कोडनानी को बरी कर दिया था, लेकिन मामले में बजरंगी की दोषसिद्धि को बरकरार रखा था। नरोदा पाटिया में 97 लोगों की हत्या कर दी गई थी।

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