नरोदा नरसंहार मामले में पूर्व मंत्री माया और बाबू बजरंगी समेत 67 आरोपी बरी

—–विशेष अदालत का बड़ा फैसला, जमानत पर थे सभी आरोपी

2002 में नरोदा गाम में हिंसा

11 लोगों की हुई थी मौत

86 लोगों पर लगाया गया आरोप

18 आराेपियों की हो चुकी मौत

1 पहले हो चुका आरोपमुक्त

67 आराेपियों को कोर्ट ने किया बरी

इंट्रो

गुजरात की विशेष अदालत ने गुरुवार को 2002 के नरोदा गाम दंगों के मामले में भाजपा की पूर्व मंत्री माया कोडनानी, विहिप नेता जयदीप पटेल और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी सहित सभी 67 आरोपियों को बरी कर दिया। 28 फरवरी 2002 को अहमदाबाद शहर के नरोदा गाम इलाके में सांप्रदायिक हिंसा में 11 लोग मारे गए थे। इस मामले में 86 आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज है। हालांकि, 86 में से अब तक 18 लोगों की मौत हो चुकी है।

सूरत। गुजरात में एसआईटी मामलों के विशेष जज एस के बक्शी की अदालत ने गुरुवार 20 अप्रैल को 67 आरोपियों को बरी कर दिया है। दरअसल, 2002 में हुए नरोदा गाम दंगों में 11 लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद पुलिस ने जांच के आधार पर गुजरात की पूर्व मंत्री और भाजपा नेता माया कोडनानी व बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी समेत 86 लोगों को आरोपी बनाया था। इन 86 आरोपियों में से 18 की पहले ही मौत हो चुकी है। मामले में 21 साल बाद फैसला आया है।

बता दें कि 2002 में गोधरा में चलती ट्रेन में आग लगा दी गई थी। इस हादसे में 58 लोगों की मौत हो गई थी। गोधरा कांड के विरोध में अगले दिन बंद बुलाया गया था। इस दौरान अहमदाबाद के नरोदा गाम में सांप्रदायिक हिंसा फैल गई थी। इसमें 11 लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद ही पूरे गुजरात में दंगे फैल गए थे। मामले में एसआईटी की जांच बैठी और इस मामले में एसआईटी ने माया कोडनानी को मुख्य आरोपी बनाया था। माया कोडनानी राज्य सरकार में पूर्व मंत्री रही हैं।

नरोदा गांव नरसंहार के मामले में आरोपियों पर आईपीसी की धारा 302 हत्या, 307 हत्या की कोशिश, 143, 147 दंगे, 148, 129बी, 153 के तहत केस दर्ज किया था। इससे पहले कोडनानी को विशेष अदालत ने नरोदा पाटिया दंगों के मामले में 28 साल की सजा सुनाई थी। इन दंगों में 97 लोगों की मौत हुई थी। हालांकि, हाईकोर्ट ने बाद में कोडनानी को बरी कर दिया था।

187 से पूछताछ, 57 चश्मदीद के बयान

इस मामले की सुनवाई 2009 से शुरु हुई थी। मामले में 187 लोगों से पूछताछ हो हुई, जबकि 57 चश्मदीद के बयान भी दर्ज किए गए थे। इस मामले में 13 साल से सुनवाई चल रही थी। सितंबर 2017 में अमित शाह माया कोडनानी के बचाव पक्ष के गवाह के रूप में पेश हुए थे। माया कोडनानी दंगों के वक्त गुजरात की मोदी सरकार में मंत्री थीं।

शाह ने अपनी गवाही में कही थी ये बात

अमित शाह ने कोर्ट के सामने कहा था कि वह 28 फरवरी को सुबह 7:15 बजे अपने घर से विधानसभा के लिए निकले थे। सदन की कार्यवाही सुबह 8:30 बजे शुरू होनी थी। उन्होंने 28 फरवरी को सुबह 8.40 बजे माया कोडनानी को गुजरात विधानसभा में देखा। उन्होंने कहा मैं नहीं जानता कि विधानसभा से रवाना होने और सोला सिविल हास्पिटल पहुंचने के पहले वह कहां थीं। इसके बाद 11 बजे से लेकर 11.30 बजे के आसपास उन्हें अहमदाबाद के सोला सिविल हास्पिटल में देखा।

नरोदा नरसंहार

27 फरवरी 2002 को गोधरा कांड के बाद गुजरात बंद का ऐलान हुआ था। नरोदा इलाके में कुछ लोगों की भीड़ दुकानें बंद कराने लगीं। लोग भी फटाफट शटर गिरा रहे थे और भीड़ बढ़ते बढ़ते माहौल में नारों का शोर गूंजने लगा था। कुछ ही मिनट में नरोदा गाम इलाके का पूरा हुलिया बदल गया. वहां चारों तरफ आगजनी, तोड़फोड़ जैसे मंजर नजर आने लगे और 11 लोगों की मौत की बात सामने आई। नरोदा गाम और नरोदा पाटिया इलाके दोनों ही हिंसा के निशाने पर रहे और नरोदा पाटिया में 97 लोगों की मौत सामने आई थी।

माया कोडनानी और बाबू बजरंगी

माया कोडनानी का पूरा नाम माया सुरेंद्रकुमार कोडनानी है। वह गुजरात के 12वें विधानसभा चुनाव में नरोदा सीट से विधायक के तौर पर चुनी गईं। वह गुजरात सरकार में वुमेन एंड चाइल्ड डेवलेप्मेंट मंत्री भी रहीं। वर्ष 2002 में गुजरात दंगों में इनकी भूमिका के लिए निचली अदालत ने वर्ष 2012 में दोषी करार दिया था। इस मामले में बाद में उन्हें हाईकोर्ट से राहत मिल गई। बाबू बजरंगी को बाबूभाई पटेल के नाम से भी जाना जाता है। उन्हें गुजरात दंगे के मामले में उम्र कैद की सजा मिली थी। वर्ष 2002 में गुजरात दंगों में बाबू बजरंगी की अहम भूमिका रहने के आरोप लगे थे। बाबू बजरंगी को दंगा भड़काने और अन्य धाराओं में दोषी मानते हुए निचली अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई थी, लेकिन नरोदा मामले में एसआईटी की तरफ से रखे गए सबूतों को गलत मानते हुए अदालत ने उन्हें रिहा कर दिया।

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