-उद्धव गुट से सुप्रीम कोर्ट ने किया सवाल
- दलीलें सुनकर शीर्ष कोर्ट ने सुरक्षित रख लिया है अपना फैसला
- पिछले साल जून में शिंदे गुट ने बगावत कर बनाई थी सरकार
नई दिल्ली। शिवसेना को लेकर चुनाव आयोग ने जरूर एकनाथ शिंदे के पक्ष में फैसला सुनाया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अभी भी अहम सुनवाई जारी है। दोनों उद्धव और शिंदे गुट की तरफ से तमाम दलीलें रखी जा रही हैं। इसी कड़ी में गुरुवार को उद्धव गुट की तरफ से कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें रखीं। उन्होंने लोकतंत्र को बचाने का हवाला दिया, सुप्रीम कोर्ट से इसकी रक्षा करने की मांग की। दोनों तरफ की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
उद्धव ठाकरे गुट की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि शीर्ष कोर्ट इस मामले में दखल दे, वरना हमारा लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा क्योंकि कोई भी सरकार जीवित नहीं रह पाएगी। इस अदालत का इतिहास संविधान के मूल्यों के उत्सव का इतिहास है। अदालत के इतिहास में यह एक क्षण है जहां लोकतंत्र का भविष्य निर्धारित होगा। मुझे पूरा यकीन है कि इस अदालत के दखल के बिना हम, हमारा लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा क्योंकि किसी भी सरकार को जीवित नहीं रहने दिया जाएगा। अब सिब्बल ने ये बात इसलिए बोली क्योंकि शुरुआत से ही उद्धव गुट द्वारा शिंदे सरकार को अंसवैधानिक माना गया है। चुनाव आयोग ने सिंबल को लेकर जो फैसला शिंदे के पक्ष में सुनाया, उसे भी लोकतंत्र की हत्या बता दिया गया था। ऐसे में सिब्बल कोर्ट से उस लोकतंत्र को बचाने की अपील कर रहे हैं।
अदालत का तल्ख अंदाज
अब इन दलीलों के दौरान एक वक्त ऐसा आया जब अदालत ने तल्ख अंदाज में कहा कि वे उद्धव ठाकरे की सरकार को फिर कैसे बहाल कर सकते हैं। सीजेआई ने कहा कि यह कहना आसान है। लेकिन क्या होता अगर उद्धव ठाकरे सीएम बन जाते हैं। लेकिन उस समय उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया? यह ऐसा ही है जैसे अदालत से कहा जा रहा है कि जो सरकार इस्तीफा दे चुकी है, उसे बहाल करें. मुख्यमंत्री ने विश्वास मत का सामना किये बगैर इस्तीफा दे दिया, हम उन्हें उस पद पर दोबारा कैसे बहाल कर सकते हैं? इसी कड़ी में जस्टिस एम आर शाह ने बोला कि अदालत उस सरकार को कैसे बहाल कर सकती है जिसने विश्वास मत का सामना नहीं किया? बात को आगे बढ़ाते हुए सीजेआई ने कहा कि यदि आप विश्वास मत खो चुके हैं तो यह एक तार्किक बात होगी, ऐसा नहीं है कि आपको सरकार ने बेदखल कर दिया है, आपने विश्वास मत का सामना ही नहीं किया?
राज्यपाल की भूमिका पर विवाद
इस पर अभिषेक मनु सिंघ्वी ने सिर्फ इतना कहा कि राज्यपाल द्वारा गैरकानूनी तरीके से फ्लोर टेस्ट बुलाया गया था। आज भी गैरकानूनी सरकार चल रही है, यहां कोई चुनाव नहीं हुआ. वैसे कल की सुनवाई के दौरान राज्यपाल की भूमिका पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सवाल उठाया था। कोर्ट ने कहा था कि सवाल यह है कि क्या राज्यपाल सिर्फ इसलिए सरकार गिरा सकते हैं, क्योंकि किसी विधायक ने कहा कि उनके जीवन और संपत्ति को खतरा है?
ये पूरा सियासी ड्रामा?
महाराष्ट्र में पिछले साल जून में एकनाथ शिंदे गुट ने बगावत कर भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली थी। शिंदे ने ज्यादा नेता अपने साथ होने की बात कहकर शिवसेना पर भी अपना दावा ठोक दिया। इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट में बहस चल रही है।
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