5 लाख से ज्यादा लोग नेतन्याहू के खिलाफ सड़कों पर उतरे

-नेतन्याहू के प्रस्ताव के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा विरोध-प्रदर्शन

(फोटो : इजराइल)

नई दिल्ली। इजरायल की सड़कों पर पांच लाख से ज्यादा लोग अब तक का सबसे बड़ा विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं और प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार के न्यायिक सुधार के प्रस्तावों का खुलकर विरोध कर रहे हैं। दरअसल, नेतन्याहू के नेतृत्व वाले कठोर दक्षिणपंथी सरकार ने देश की न्याय व्यवस्था में बड़े सुधारों की योजना का प्रस्ताव दिया है जिसका विरोध पिछले दस सप्ताह से पूरे इजरायल में हो रहा है।

इजरायल की राजधानी तेल अवीव में करीब दो लाख प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर चुके हैं, वहीं दूसरे अहम शहर हाइफा में भी रिकॉर्ड स्तर पर प्रदर्शनकारी सरकार के खिलाफ़ सड़कों पर उतरे हैं। प्रदर्शनकारियों और आलोचकों का कहना है कि सरकार के प्रस्तावित सुधारों से लोकतंत्र कमजोर होगा, जबकि पीएम नेतन्याहू ने दावा किया है कि प्रस्तावित न्यायिक सुधार मतदाताओं के लिए बेहतर हैं। आलोचक प्रस्तावित सुधारों को न्यायिक स्वतंत्रता के लिए खतरे के रूप में भी देखते हैं। विपक्ष के नेता यायर लापिड ने बीबीसी से कहा, “आतंकवाद की लहर हमें मार रही है, हमारी अर्थव्यवस्था चरमरा रही है,पैसा देश से भाग रहा है। ईरान ने कल ही सऊदी अरब के साथ एक नए समझौते पर हस्ताक्षर किए लेकिन इस सरकार को केवल इस बात की परवाह है कि वह इजरायली लोकतंत्र को कैसे कुचले?”

तेल अवीव में एक प्रदर्शनकारी तामीर गुएत्सब्री ने रॉयटर्स से कहा, “यह न्यायिक सुधार नहीं है। यह एक क्रांति है जो इजरायल को पूर्ण तानाशाही की ओर ले जा रही है और मैं चाहता हूं कि इजरायल मेरे बच्चों के लिए एक लोकतंत्र बना रहे।” प्रदर्शनकारियों में शामिल मिरी लहात नाम की एक महिला ने कहा, “मैं न्याय व्यवस्था में सुधारों के प्रस्ताव का विरोध करने आई हूं। ये प्रधानमंत्री के खिलाफ़ भी विरोध है। वो तानाशाह बनते जा रहे हैं, हमें तानाशाही नहीं चाहिए। हमारे मुल्क को गणतंत्र बने रहना चाहिए।”

ये प्रस्तावित न्यायिक सुधार

प्रस्तावित न्यायिक सुधारों का उद्देश्य निर्वाचित सरकार को न्यायाधीशों के चयन में अधिक ताकतवर बनाना और कार्यपालिका के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय के शासन करने या कानूनों को रद्द करने के अधिकार को प्रतिबंधित करना है। न्यायिक सुधारों से जुड़े बिल की पहली रीडिंग को इसराइली संसद कनेसेट ने पारित कर दिया है। 21 फरवरी की आधी रात के बाद हुई वोटिंग में सुधारों के पक्ष में 63 वोट पड़े जबकि विरोध में 47 वोट पड़े। सरकार के मुताबिक इन सुधारों के जरिये वो ये पक्का करना चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट अपनी ताकत का जरूरत से ज़्यादा इस्तेमाल न करे लेकिन आलोचकों का कहना है कि पीएम नेतन्याहू के इन बदलावों से देश में लोकतांत्र खत्म हो जाएगा। प्रस्तावों का यह कह कर विरोध हो रहा है कि इससे भ्रष्टाचार बढ़ेगा और इजराइल कूटनीतिक तौर पर अलग-थलग पड़ जाएगा। विरोधियों का कहना है कि अदालतों पर नियंत्रण के जरिये नेतन्याहू अपने खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के मामलों से बचना चाहते हैं।

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