उद्धव गुट को बड़ा झटका, शिंदे को सौंपी ‘शिवसेना’ और ‘तीर-कमान’

—निर्वाचन आयोग का फैसला : एकनाथ शिंदे नीत गुट असली शिवसेना

–उद्धव गुट को ‘मशाल’ चुनाव चिह्न रखने की दी अनुमति

इंट्रो

शिवसेना को लेकर जारी विवाद पर निर्वाचन आयोग ने बड़ा फैसला लिया है। चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे नीत गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दे दी है। इसी के साथ चुनाव आयोग ने कहा कि पार्टी का चुनाव चिह्न ‘तीर-कमान’ और नाम ‘शिवसेना’ अब एकनाथ शिंदे गुट के पास रहेगा। इधर,


नई दिल्ली। निर्वाचन आयोग ने एकनाथ शिंदे नीत धड़े को असली शिवसेना के रूप में शुक्रवार को मान्यता दी और उसे ‘तीर-कमान’ चुनाव चिह्न आवंटित करने का आदेश दिया। पार्टी पर नियंत्रण के लिए चली लंबी लड़ाई के बाद 78 पृष्ठों के अपने आदेश में, आयोग ने उद्धव ठाकरे गुट को राज्य में विधानसभा उपचुनावों के पूरा होने तक ‘मशाल’ चुनाव चिह्न रखने की अनुमति दी। आयोग ने कहा कि वर्ष 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना के 55 विजयी उम्मीदवारों में से एकनाथ शिंदे का समर्थन करने वाले विधायकों के पक्ष में लगभग 76 फीसदी मत पड़े। महाराष्ट्र में 2019 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना के विजयी उम्मीदवारों के पक्ष में मिले मतों से 23.5 प्रतिशत मत उद्धव ठाकरे धड़े के विधायकों को मिले थे।

शिंदे ने कहा- बालासाहेब की विचारधारा की जीत

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इस फैसले को बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा की जीत बताया। उन्होंने कहा, मैं निर्वाचन आयोग को धन्यवाद देता हूं। लोकतंत्र में बहुमत का महत्व होता है। शिंदे ने कहा, यह बालासाहेब की विरासत की जीत है। हमारी शिवसेना वास्तविक है। हमने बालासाहेब के विचारों को ध्यान में रखते हुए पिछले साल महाराष्ट्र में (भारतीय जनता पार्टी के साथ) सरकार बनाई।

राउत बोले- देश तानाशाही की ओर

सांसद संजय राउत ने ट्वीट किया- इसकी स्क्रिप्ट पहले से तैयार थी। देश तानाशाही की ओर बढ़ रहा है। कहा गया था कि नतीजा हमारे पक्ष में होगा, लेकिन अब एक चमत्कार हो गया है। लड़ते रहो। ऊपर से नीचे तक करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाया है। हमें फिक्र करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जनता हमारे साथ है। हम जनता के दरबार में नया चिह्न लेकर जाएंगे और फिर से शिवसेना खड़ी करके दिखाएंगे, ये लोकतंत्र की हत्या है।

इधर, सुप्रीम कोर्ट में टला फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में शिवसेना बनाम शिंदे गुट विवाद पर फैसला 21 फरवरी तक टाल दिया है। पीठ ने कहा, नबाम रेबिया के सिद्धांत इस मामले में लागू होते हैं या नहीं, केस को 7 जजों की बेंच को भेजा जाना चाहिए या नहीं, ये मौजूदा केस के गुण-दोष के आधार पर तय किया जा सकता है। इसे मंगलवार को सुनेंगे। सीजेआई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ इस केस को 7 जजों की बेंच को रेफर करने का फैसला एक दिन पहले सुरक्षित रख लिया था। गौरतलब है कि अरुणाचल प्रदेश के 2016 के नबाम रेबिया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि यदि स्पीकर को हटाने की याचिका लंबित हो तो स्पीकर विधायकों की अयोग्यता प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ सकते।

बालासाहेब ने ऐसे खड़े की थी शिवसेना

बाला साहेब ठाकरे ने मराठी मानुस के नाम पर 19 जून 1966 को शिवसेना बनाई। शुरुआत में इस दल का प्रतीक चिन्ह बाघ था। शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे राजनीति में आने से पहले कार्टूनिस्ट का काम किया करते थे। बाल ठाकरे ने करीब 46 साल तक सार्वजनिक जीवन काम किया लेकिन उन्होंने न तो कभी कोई चुनाव लड़ा और न ही कोई राजनीतिक पद स्वीकार किया। फिर भी महाराष्ट्र की राजनीति में वह अहम भूमिका निभाते रहे। बाला साहब ठाकरे ने 19 जून 1966 को शिवसेना की स्थापना की। शिवसेना को उन्होंने राजनीतिक पार्टी के रूप में दो बर्ष बाद पंजीकृत करवाया। इसके बाद से ही शिवसेना की राजनैतिक सफर की शुरूआत हुई और 1971 के लोकसभा चुनाव में पहली बार उम्मीदवार उतारे लेकिन हार का सामना करना पड़ा। शिवसेना के गठन के वक्त महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री वसंतराव नाइक थे। कहा जाता है कि वसंत राव नाइक ने शिवसेना को बढ़ावा दिया और बाल ठाकरे का भरपूर इस्तेमाल किया। इसी वजह से उस दौर में शिवसेना को कई लोग मजाक में वसंत सेना भी कहते थे। 1970 में मुंबई की पर्ले विधानसभा सीट का उपचुनाव जीतकर वामनराव महाडिक शिवसेना के पहले विधायक बने। 1971 के लोकसभा चुनाव में बाल ठाकरे ने कांग्रेस (o) के साथ गठबधंन और 3 कैंडिडेट भी उतारे, लेकिन सफलता नहीं मिली। 1972 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना 26 सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली। बाल ठाकरे ने 1975 में इंदिरा गांधी के आपातकाल का समर्थन किया और फिर 1977 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस का समर्थन किया था। 1980 में शिवसेना ने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा और कांग्रेस का समर्थन किया।

18 साल बाद मिला था ‘तीर कमान’

शिवसेना को चुनाव चिन्ह के रूप में तीर कमान 18 साल बाद मुंबई में हुए 1985 के नगर निकाय चुनाव में मिला। इससे पहले शिवसेना ने खजूर का पेड़, ढाल-तलवार और रेल का इंजन जैसे चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा। शिवसेना साल 1984 में एक बार भाजपा के चुनाव चिन्ह कमल के फूल पर भी चुनाव लड़ चुकी थी।

000

प्रातिक्रिया दे