–अधिकांश दवाइयां सिरदर्द-बुखार और उल्टी में होती हैं प्रयोग
नई दिल्ली। सिरदर्द-बुखार और उल्टी में प्रयोग होने वाली 50 दवाएं ड्रग्स टेस्ट में फेल हो गईं। सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने देशभर में डाइक्लोविन प्लस और पैरासीटामॉल समेत 50 दवाओं को ड्रग स्टैंडर्ड टेस्ट में फेल कर दिया है। अक्टूबर के महीने में देश भर के अलग-अलग प्रयोगशालाओं से आए हुई 1280 दवाइयों में से 50 दवाओं को टेस्ट मेंफेल किया गया है। संस्था के अनुसार यह एक रूटीन प्रक्रिया है। हर महीने दवाइयों के सैंपल जांच के लिए आते हैं। अलग-अलग कारणों से स्टैंडर्ड और गुणवत्ता की जांच सही पाए जाने वाली दवाइयों को अप्रूव किया जाता है।
एक राज्य से दूसरे राज्य की भौगोलिक स्थिति, डेमोग्राफी और क्लाइमेट जैसी स्थितियों के अलावा ब्रांड मैचिंग जैसी वजह से भी दवाएं टेस्ट में फेल हो सकती है। इन सैपलों को दवाओं के दवा सुरक्षा के मानकों पर खरा न उतने की वजह से फेल किया गया है। फेल की गई दवाओं का निर्माण हरियाणा, कोलकाता, असम, बिहार, गुजरात, उत्तर प्रदेश, झारखंड समेत उत्तराखंड में हुआ था। इन 50 दवाओं में से अकेले उत्तराखंड की ही 11 दवाएं शामिल हैं।
दवा कंपनियों को नोटिस
सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने इन दवाओं को बनाने वाली कंपनियों को कारण बताओ नोटिस कर दिया है। कंपनियों को इन दवाओं का पूरा स्टॉक बाजार से हटाने के निर्देश दिए गए हैं। संबंधित क्षेत्रों के सहायक दवा नियंत्रकों को इस मामले में पूरी रिपोर्ट सौंपने को कहा है। अक्टूबर से पहले इसी तरह स्वास्थ्य मंत्रालय ने जून में 26, जुलाई में 53,अगस्त में 45, सितंबर में 59 दवाओं के सैंपल को टेस्ट में फेल किया था। ये दवाएं भी मानकों पर खरी नहीं उतरी थीं।
बुखार, उल्टी, सिरदर्द और विटामिन की दवाएं
जो दवाएं फेल हुई हैं। इनमें से अधिकतर का इस्तेमाल एंटीबायोटिक के रूप में किया जाता है। इसके अलावा अन्य दवाएं बुखार, उल्टी, सिरदर्द और विटामिन के रूप में ली जाती हैं। सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन की ओर से हर साल इस तरह के टेस्ट किए जाते हैं। पिछले दिनों हुए टेस्ट में हिमाचल प्रदेश में बनी हुई कई दवाओं को टेस्ट में फेल किया गया था और बाजारों से वापस लेने का आदेश दिया गया था।
आईएमए ने कहा- फेल होने का अनुपात 3 से 4 फीसदी
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सचिव डॉ अनिल गोयल कहते हैं कि दुनिया भर में दवाइयों के सैंपल इन फेल होने का अनुपात 3 से 4% का है। हमारे यहां भी लगभग यही अनुपात है लेकिन अगर यह 6% से ज्यादा हो तो पैनिक की स्थिति हो सकती है। सवाल तीन या चार प्रतिशत का नहीं है। दवाइयों की गुणवत्ता शत प्रतिशत रहनी चाहिए। किन वजहों से इन्हें सेम्पलिंग में फेल किया गया है। यह जानकारी नहीं है, लेकिन सेंपलिंग एरर डेमोग्राफी, टेंपरेचर पेटेंट जैसे कारणों से हो सकते हैं।
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