‘राइजिंग टेंशन इन द हिमालयाज: ए जियोस्पेशियल एनालिसिस ऑफ चाइनीज बॉर्डर इनकर्जंस इनटू इंडिया’ नामक अंतरराष्ट्रीय शोध में किया गया है यह खुलासा।
.नई दिल्ली।
पूर्वी लद्दाख में बीते करीब ढाई साल से जारी एलएसी विवाद और विदेश मंत्री एस.जयशंकर के चीन को दिए गए हालिया दो टूक संदेश कि सीमा पर पूर्ण शांति के बिना ड्रैगन के साथ संबंध सामान्य नहीं होंगे के तुरंत बाद सामने आए अंतरराष्ट्रीय शोध में एक बेहद चौंकाने वाला खुलासा करते हुए कहा गया है कि अक्साई चिन से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक के इलाके में चीन द्वारा की गई घुसपैठ की घटनाएं बिना योजना के या स्वतंत्र नहीं थीं। बल्कि उनके पीछे चीन की विस्तारवादी नीति के तहत एलएसी के विवादित इलाकों में स्थायी कब्जे के मकसद से बनाई गई सोची-समझी रणनीति और योजना बड़ी वजह है। यह जानकारी बीते गुरुवार को जारी किए गए ‘राइजिंग टेंशन इन द हिमालयाज: ए जियोस्पेशियल एनालिसिस ऑफ चाइनीज बॉर्डर इनकर्जंस इनटू इंडिया’ नामक एक अंतरराष्ट्रीय शोध के जरिए सामने आई है। जिसे नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी, नीदरलैंड के डेल्फ्ट के तकनीकी विश्वविद्यालय और नीदरलैंड डिफेंस अकादमी द्वारा गठित की गई अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की एक टीम ने तैयार किया है। इन्होंने अपने शोध के दौरान बीते डेढ़ दशक (2006 से 2020 तक) के दौरान एलएसी के तमाम क्षेत्रों में हुए घटनाक्रम के मूल डाटाबेस का अध्ययन और विश्लेषण कर ये व्यापक रिपोर्ट तैयार की है।
समय के साथ बढ़ती घुसपैठ
शोधकर्ताओं ने अपने शोध में विवाद से जुड़े इलाकों को दो भागों में बांटा है। इसमें एक भारत की पश्चिम सीमा में पड़ने वाला अक्साई चिन है और दूसरा देश की पूर्वी सीमा में स्थित अरुणाचल प्रदेश का है। इन जगहों पर चीनी सेना की घुसपैठ की घटनाओं में समय के साथ-साथ बढ़ोतरी देखी जा रही हैं। इसके अलावा इन्हें कहीं से भी गलती से हुई घटनाएं मानकर खारिज नहीं किया जा सकता है। क्योंकि आंकड़ों का सटीक विश्लेषण यह साफ करता है कि ये घटनाएं चीन की विस्तारवादी नीति और योजनाबद्ध ढंग से एलएसी से जुड़े इन दोनों विवादित इलाकों में स्थायी कब्जे के उद्देश्य से की गई थीं। गौरतलब है कि भारत और चीन के बीच वर्ष 2020 के मध्य से एलएसी विवाद जारी है। जिसका समाधान निकालने के लिए अब तक सैन्य कमांडरों की कुल 16 बैठकें हो चुकी हैं। लेकिन इनका नतीजा केवल यही रहा है कि गलवान, पैंगोंग झील के दोनों किनारों, गाग्रा-हॉट स्प्रिंग के इलाकों से दोनों देशों की सेनाएं आक्रामक मुद्रा से पीछे हट चुकी हैं। जबकि देपसांग, डीबीओ और डेमचौक के विवादित इलाकों में आज भी दोनों के बीच तनाव बरकरार है। इन सबके बीच भारत की सशस्त्र सेनाएं एलएसी पर किसी भी चुनौती से निपटने के लिए हरदम तैयार हैं। जल्द ही दोनों देशों के बीच अगले 17वें दौर की सैन्य कमांडरों की बैठक हो सकती है।
शोध का हिस्सा बनी गलवान झड़प
इस अध्ययन में वर्ष 2020 में एलएसी विवाद की शुरुआत के तुरंत बाद भारत और चीन की सेनाओं के बीच गलवान घाटी में हुई खूनी हिंसक झड़प का भी जिक्र किया गया है। जिसमें भारत के 20 जवान और चीन के भी कई सैनिक मारे गए थे। भारत के इलाके में चीन की घुसपैठ की अब कई खबरें आती रहती हैं। दुनिया के दो बड़ी जनसंख्या वाले दो देशों के बीच बढ़ता ये तनाव अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और विश्व अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम पैदा करता है। इलाके में सैन्यीकरण का नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है। चीन अक्साई चिन से लेकर अरुणाचल के इलाकों पर अपना दावा करता है। जिसे भारत कतई स्वीकार नहीं करता है।
यह विशेषज्ञ शोध में हुए शामिल
इस शोध के लेखकों में नीदरलैंड के डेल्फ्ट के तकनीकी विश्वविद्यालय, डेल्फ्ट संस्थान के एप्लाइड गणित के जान-टिनो ब्रेथौवर और रॉबर्ट फोककिंक, प्रिंस्टन विवि के स्कूल ऑफ पब्लिक एंड इंटरनेशनल अफेयर्स के केविन ग्रीन, नीदरलैंड रक्षा अकादमी के रॉय लिंडेलॉफ, डार्टमाउथ कॉलेज के कंप्यूटर विज्ञान विभाग कैरोलिन टॉर्नक्विस्ट और यूएस के नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ कंप्यूटर साइंस और इनवास्टन के बफेट इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल अफेयर्स के वी.एस. सुब्रमण्यम शामिल हैं।
हाई अलर्ट की मुद्रा में हैं भारत-चीन
शोध कहता है कि भारत और चीन एलएसी पर लगातार हाई अलर्ट की स्थिति में हैं। लेकिन दोनों के बीच इस बात के भी कोई संकेत नहीं हैं कि आगे भविष्य में इस स्थिति में कोई सुधार होगा। इस संघर्ष का समाधान अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा, ग्लोबल इकॉनमी और हिमालय की विशालकाय पारिस्थितिकी संरक्षण के लिए काफी लाभदायक होगा। यहां बता दें कि एलएसी के अलग-अलग क्षेत्रों में चीन की बढ़ती घुसपैठ की घटनाओं की केंद्र सरकार ने भी पुष्टि की है। वर्ष 2019 में लोकसभा में तत्कालीन रक्षा राज्य मंत्री श्रीपद येसो नाइक ने लोकसभा में बताया था कि 2016 में चीन ने भारतीय सीमा में 273 बार घुसपैठ की थी। जो कि 2017 में बढ़कर 426 थी और 2018 में घटकर 326 हो गई थीं।
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