पश्चिमी देशों की नाराजगी के बाद भी भारत और रूस के बीच क्यों बढ़ रहा व्यापार? जानें बड़े कारण

विदेश मंत्री एस जयशंकर सात और आठ नवंबर को दो दिन की रूस यात्रा पर थे। इस दौरान उन्होंने रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ द्विपक्षीय मुद्दों के साथ-साथ क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर बात की। व्यापारिक समझौतों को लेकर भी दोनों देशों के बीच मंथन हुआ। वह भी तब जब अमेरिका समेत कई पश्चिमी देश भारत पर रूस के साथ बढ़ते व्यापारिक रिश्तों को कम करने का दबाव बना रहे हैं। इसके बावजूद भारत तटस्थ है। यही कारण है कि विदेश मंत्री के इस दौरे पर पूरी दुनिया की नजर टिकी थी।

ऐसे में आइए जानते हैं कि कैसे दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते बढ़ रहे हैं? इसके क्या कारण हैं? विशेषज्ञों का क्या कहना है?

पश्चिमी देशों के ऐतराज के बाद भी भारत-रूस के रिश्ते क्यों मजबूत हो रहे?
इसे समझने के लिए हमने विदेश मामलों के जानकार डॉ. आदित्य पटेल से बात की। उन्होंने कहा, ‘अमेरिका समेत कई पश्चिमी देश रूस को कूटनीतिक तौर पर अलग-थलग करने की कोशिश कर रहे हैं। कई पश्चिमी कंपनियों ने रूस में अपना कारोबार बंद कर दिया है और निवेश भी रोक दिया है। कुछ कंपनियां और अंतरराष्ट्रीय ब्रांड रूस से वापस लौट गए हैं। इससे रूस को भी काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।’

डॉ. आदित्य कहते हैं, ‘भारत पर भी इसके लिए दबाव बनाया जा रहा है। अमेरिका कई बार रूस से भारत के व्यापारिक रिश्तों पर तंज कस चुका है। हाल ही में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर हुई बातचीत के दौरान रूस-यूक्रेन का मसला उठाया था। ब्रिटेन के विदेश मंत्री जेम्स क्लेवरली ने पिछले हफ्ते दिल्ली में भारत के विदेश मंत्री जयशंकर के साथ मुलाकात के दौरान भी इस पर चर्चा की थी।’
‘लगातार पड़ रहे दबाव के बाद भी भारत इस मामले में तटस्थ है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर, शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी समेत भारत सरकार के कई मंत्री और अफसर इसको लेकर दो टूक बयान देते रहे हैं। पश्चिमी मीडिया में भी भारत खुलकर अपने फैसले को सही बताता रहा है। भारत ने साफ कहा है कि वह किसी गुट में शामिल नहीं होगा। भारत रूस के साथ रिश्ते अच्छे हैं और करोड़ों नागरिकों के हित में जो सही होगा, उसी के अनुसार भारत अपना फैसला लेगा।’

डॉ. आदित्य के अनुसार, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सितंबर में उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में शामिल हुए थे। यहां भी उनकी मुलाकात रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से हुई थी। इसके पहले पिछले साल दिसंबर में रूसी राष्ट्रपति भारत आए थे। विदेश मंत्री ने जुलाई 2021 में रूस का दौरा किया था और उसके बाद अप्रैल 2022 में रूसी विदेश मंत्री ने नई दिल्ली की यात्रा की। मतलब लगातार दोनों देशों के रिश्ते बेहतर हो रहे हैं

उन्होंने आगे कहा, ‘भारत के सामने अपनी कई चुनौतियां हैं। खासतौर पर महंगाई और आर्थिक तौर पर देश को मजबूत बनाना। इसके लिए जरूरी देशों के साथ रिश्ते मजबूत रखना महत्वपूर्ण है। रूस से भारत कई चीजें आयात करता है। इसमें ईंधन भी शामिल है। यूक्रेन युद्ध के शुरू होने के बाद जब पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाने शुरू किए तो भारत को एक अच्छा मौका मिल गया। रूस ने भारत को कम दाम पर ईंधन देने की पेशकश की। इसके जरिए तेल के दाम स्थिर करने में भारत को मदद मिली। रक्षा क्षेत्र में भी रूस भारत का महत्वपूर्ण साझेदार है। ऐसे में भारत और रूस के बीच बेहतर रिश्ते रखना जरूरी है।’

डॉ. आदित्य ने आगे कहा, ‘भारत-चीन और पाकिस्तान के बीच तनाव के बारे में सभी को मालूम है। जबकि चीन और रूस के रिश्ते भी अच्छे हैं। ऐसे में भारत-चीन के बीच तनाव की स्थिति में रूस काफी मदद कर सकता है। आर्थिक तौर पर भारत को मजबूत बनाने में भी रूस की भूमिका काफी अहम होने वाली है। रूस ने एक समझौते के तहत मेक इन इंडिया प्रोग्राम को आगे बढ़ाने का फैसला लिया है। इसके अनुसार, रूसी कंपनियां भारत में अपने प्लांट लगाएंगी।’

व्यापार को मिली नई पहचान
दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते भी काफी मजबूत हुए हैं। यही कारण है कि भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार में 500 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। इस साल अप्रैल से अगस्त के बीच, सिर्फ पांच महीनों में द्विपक्षीय व्यापार 18.2 अरब डॉलर रहा। पिछले साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो ये आंकड़ा केवल आठ अरब डॉलर था।

रूस से भारत अब भारी मात्रा में कच्चे तेल और फर्टिलाइजर का आयात कर रहा है। अगस्त तक हुए 18.2 अरब डॉलर के व्यापार में 91% हिस्सेदारी कच्चे तेल और फर्टिलाइजर का ही था। आने वाले समय में इसमें और बढ़ोतरी होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों देश स्थानीय मुद्रा में व्यापार को बढ़ावा देने की तैयारी कर रहे हैं।

इसके अलावा रूस पर पश्चिमी देशों के लगे प्रतिबंधों के बाद रूसी तेल की कीमतों में भारी गिरावट आई है। रूस ने कच्चे तेल के दाम में भारत को भारी छूट देना शुरू कर दिया। कहा जाता है कि भारत को ये तेल औसतन 60 डॉलर प्रति बैरल के हिसाब से मिलता है। भारत और रूस ने द्विपक्षीय व्यापार में 40 अरब डॉलर का लक्ष्य रखा है।

अमेरिका ने क्या कहा?
अमेरिका ने भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की हालिया मॉस्को यात्रा में रूस-यूक्रेन जंग को लेकर दिए गए संदेश का समर्थन किया है। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि जयशंकर का रूस को संदेश पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा पूर्व में दिए गए बयान से भिन्न नहीं है। मोदी ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कहा था कि ‘यह जंग का युग नहीं है।’

अमेरिकी प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि भारत ने एक बार फिर यूक्रेन जंग के खिलाफ राय दी है। वह इस जंग का कूटनीति और बातचीत से खात्मा चाहता है। उन्होंने कहा कि रूसी लोग भारत जैसे उन देशों के संदेश को सुनें, जिनके पास आर्थिक, राजनयिक, सामाजिक और राजनीतिक ताकत है। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने यूएन में साफतौर पर कहा था कि यह समय युद्ध का नहीं है। जयशंकर का रूस को ताजा संदेश हमें उससे अलग नजर नहीं आता है।

ऊर्जा और रक्षा सहायता के लिए रूस भरोसेमंद नहीं
इसके साथ ही नेड प्राइस ने भारत को आगाह किया कि रूस ऊर्जा और सुरक्षा सहायता को लेकर भरोसेमंद नहीं है। भारत यदि समय के साथ रूस पर अपनी निर्भरता कम करेगा तो यह न केवल यूक्रेन या क्षेत्र के हित में होगा, बल्कि यह भारत के अपने द्विपक्षीय हित में भी होगा, यह हमने रूस के रवैये को देखते हुए महसूस किया है। नियमित प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूछे गए सवाल के जवाब में अमेरिकी प्रवक्ता ने यह बात कही। नेड प्राइस ने कहा कि अमेरिका ने भारत के साथ हर क्षेत्र में साझेदारी को मजबूत किया है। इनमें आर्थिक, सुरक्षा, सैन्य सहयोग भी शामिल है।भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर बुधवार सुबह ही मॉस्को से लौटे हैं।

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