—आरक्षण संबंधी 103वें संविधान संशोधन की वैधता बरकरार
नई दिल्ली। आर्थिक आधार पर देश में आरक्षण अब आगे भी जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने गरीबों के 10 फीसदी आरक्षण पर मुहर लगा दी। सीजेआई यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संवैधानिक बेंच में से तीन जजों ने आरक्षण के पक्ष में अपना फैसला दिया है, जबकि दो जजों ने पर अपनी असहमति जताई है।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने ऐतिहासिक फैसले में दाखिलों और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने वाले 103वें संविधान संशोधन की वैधता को दो के मुकाबले तीन मतों के बहुमत से बरकरार रखा। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता। प्रधान न्यायाधीश यू यू ललित की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने केंद्र द्वारा 2019 में लागू किए गए 103वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली 40 याचिकाओं पर चार अलग-अलग फैसले सुनाए। न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी एवं न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला ने कानून को बरकरार रखा, जबकि न्यायमूर्ति ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट ने इसे रद्द कर दिया। न्यायाधीशों ने अदालत कक्ष में 35 मिनट से अधिक समय तक चार अलग-अलग फैसले पढ़े।
न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने अपना निर्णय पढ़ते हुए कहा कि 103वें संशोधन को संविधान के मूल ढांचे को भंग करने वाला नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि आरक्षण सकारात्मक कार्य करने का एक जरिया है ताकि समतावादी समाज के लक्ष्य की ओर एक सर्व समावेशी तरीके से आगे बढ़ना सुनिश्चित किया जा सके और यह किसी भी वंचित वर्ग या समूह की समावेशिता का एक साधन है। न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने कहा कि 103वें संविधान संशोधन को भेदभाव के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि 103वें संविधान संशोधन को ईडब्ल्यूएस के कल्याण के लिए उठाए गए संसद के सकारात्मक कदम के तौर पर देखना होगा। न्यायमूर्ति पारदीवाला ने उनके विचारों से सहमति जताई और संशोधन की वैधता को बरकरार रखा।
बहरहाल, उन्होंने कहा कि आरक्षण का मकसद सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना है, लेकिन यह अनिश्चितकाल तक जारी नहीं रहना चाहिए, ताकि यह निहित स्वार्थ न बन जाए। न्यायमूर्ति भट ने अपना अल्पमत का विचार व्यक्त करते हुए ईडब्ल्यूएस आरक्षण संबंधी संविधान संशोधन पर असहमति जताई और उसे रद्द कर दिया। उन्होंने 103वें संशोधन कानून को इस आधार पर असंवैधानिक और अमान्य करार दिया कि यह संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन है। प्रधान न्यायाधीश ललित ने न्यायमूर्ति भट के विचार से सहमति व्यक्त की।
न्यायालय ने संविधान के 103वें संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सात सितंबर को सुरक्षित रख लिया था। पीठ ने अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित अन्य वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनने के बाद इस कानूनी प्रश्न पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण ने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है या नहीं। शीर्ष न्यायालय में इस संबंध में साढ़े छह दिन तक सुनवाई हुई थी।
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40 याचिकाओं की सुनवाई
न्यायालय ने करीब 40 याचिकाओं पर सुनवाई की और 2019 में ‘जनहित अभियान’ द्वारा दायर की गई एक अग्रणी याचिका सहित ज्यादातर में संविधान (103वां) संशोधन अधिनियम 2019 को चुनौती दी गई थी। उल्लेखनीय है कि न्यायालय ने संविधान के ‘मूल ढांचे’ के सिद्धांत की घोषणा 1973 में केशवानंद भारती मामले में की थी। न्यायालय ने कहा था कि संविधान के मूल ढांचे में संशोधन नहीं किया जा सकता।
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पांच जजों की पीठ ने गरीबों के आरक्षण पर की ऐसी टिप्पणी
तीन जज आरक्षण के पक्ष में..
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी
केवल आर्थिक आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण संविधान के मूल ढांचे और समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है।
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जस्टिस बेला त्रिवेदी
मैं यह मानती हूं कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है और न ही यह किसी तरह का पक्षपात है।
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जस्टिस जेबी पादरीवाला
ईडब्ल्यूएस कोटा सही है। ईडब्ल्यूएस कोटा अनिश्चितकाल के लिए नहीं बढ़ाना चाहिए और जो लोग आगे बढ़ गए हैं, उन्हें इससे हटना चाहिए।
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विरोध में दो जज—-
जस्टिस रवींद्र भट
ईडब्ल्यू आरक्षण केवल भेदभाव और पक्षपात है। ये समानता की भावना को खत्म करता है। ऐसे में मैं इस आरक्षण को गलत ठहराता हूं।
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सीजेआई यूयू ललित- मैं जस्टिस रवींद्र भट के विचारों से पूरी तरह से सहमत हूं।
अब क्या होगा
पांच सदस्यीय पीठ में तीन जस्टिस एकमत हुए। ऐसे में सामान्य वर्ग के गरीबों को दिया जाने वाला 10% आरक्षण जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों में से 3 जजों ने इसे सही ठहराया।
सीजेआई ने आखिरी दिन किए 6 फैसले
अपने अंतिम कार्य दिवस में सीजेआई यूयू ललित ने छह अहम मामलों पर फैसला सुनाया। इसमें सबसे बड़ा मामला सामान्य वर्ग के आर्थिक गरीब को 10 फीसदी आरक्षण का है। दूसरा मामला झारखंड सीएम हेमंत सोरेन के खिलाफ खनन पट्टा मामले का है। तीसरा मामला आम्रपाली आवासीय योजना से जुड़ा है। इसमें आवंटियों को फ्लैट दिलवाने या उसके बदले पैसे दिलवाने पर सुप्रीम कोर्ट बड़ा फैसला सुनाने वाला है। वहीं अन्य चार मामले सामान्य हैं। जस्टिस यूयू ललित ने देश के 49वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में 27 अगस्त को शपथ ली थी। उनका कार्यकाल 74 दिन का रहा। जस्टिस यूयू ललित का परिवार पीढ़ियों से न्यायिक प्रक्रिया से जुड़ा रहा है। जस्टिस ललित के दादा रंगनाथ ललित आजादी से पहले सोलापुर में एक वकील थे। जस्टिस यूयू ललित के 90 वर्षीय पिता उमेश रंगनाथ ललित भी एक पेशेवर वकील रह चुके हैं। बाद में उन्होंने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य किया। इसके अलावा जस्टिस ललित के दो बेटे हर्षद और श्रेयश, जिन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। हालांकि, बाद में श्रेयश ललित ने भी कानून की ओर रुख किया। उनकी पत्नी रवीना भी वकील हैं।
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37 साल के कार्यकाल को याद किया
निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय में करीब 37 साल की अपनी यात्रा को पीछे मुड़कर देखा। उन्होंने कहा कि उन्होंने वकील और न्यायाधीश दोनों रूप में अपने कार्यकाल में उत्साह के साथ काम किया। प्रधान न्यायाधीश ललित आठ नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। वह अपने निर्वाचित उत्तराधिकारी न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ तथा न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी के साथ आज दोपहर में आखिरी बार शीर्ष अदालत की रस्मी पीठ पर बैठे और संबोधित किया।
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खनन पट्टा विवाद, सीएम सोरेन को दी राहत
सुप्रीम कोर्ट ने खनन पट्टा मामले की जांच संबंधी जनहित याचिकाओं को सुनवाई योग्य बताने वाले उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एवं राज्य सरकार की याचिकाओं को सोमवार को स्वीकार कर लिया। न्यायालय ने झारखंड उच्च न्यायालय के तीन जून के आदेश को भी दरकिनार कर दिया। झामुमो के नेता पर राज्य के खनन मंत्री रहते हुए खुद को खनन पट्टा देने का आरोप लगाया गया है। सोरेन ने न्यायालय के फैसले के बाद ट्वीट किया, सत्यमेव जयते। पीठ ने कहा, हमने इन दो याचिकाओं को अनुमति दे दी है और जनहित याचिकाओं को सुनवाई योग्य नहीं ठहराते हुए झारखंड उच्च न्यायालय के तीन जून, 2022 को पारित आदेश को दरकिनार कर दिया है।
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