टैक्स में छूट चाहने वाली सार्वजनिक संस्थाएं नहीं कर सकतीं व्यापार

  • आईटी अधिनियम की धारा 2 (15) सर्वोच्च न्यायलय ने की सुनवाई

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक सामान्य सार्वजनिक सुविधा देने वाली संस्थाएं किसी भी व्यापार या वाणिज्यिक गतिविधियों में शामिल नहीं हो सकती हैं। अगर वह धर्मार्थ कार्य करने वाले संगठनों को मिलने वाली आयकर छूट अपने लिए भी चाहती हैं, तो फिर सशुल्क सेवाएं प्रदान करें। मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने 149 पन्नों का यह फैसला आईटी अधिनियम की धारा 2(15) के प्रावधान की व्याख्या से संबंधित अपीलों पर सुनवाई के दौरान सुनाया। आयकर अधिनियम की धारा 2 (15) धर्मार्थ उद्देश्य को परिभाषित करती है। इसमें गरीबों को राहत देना, शिक्षा, चिकित्सा राहत, पर्यावरण के संरक्षण और स्मारकों या स्थानों या कलात्मक या ऐतिहासिक रुचि की वस्तुओं का संरक्षण और जनोपयोगिता से जुड़ी किसी अन्य वस्तु का संवर्धन करना शामिल है।

फैसलों के खिलाफ अपील

आयकर में छूट के लिए आयकर महानिदेशक ने विभिन्न उच्च न्यायालयों के फैसलों के खिलाफ अपील की थी। इसमें कहा गया था कि आईटी अधिनियम के अंतर्गत कर में छूट के लिए किसी भी जीपीयू श्रेणी के चैरिटेबल ट्रस्ट के लिए व्यापार, वाणिज्य या व्यवसाय जारी रखना अयोग्यता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने आयकर विभाग की ओर से दिए गए दस्तावेजों आदि पर ध्यान दिया कि धर्मार्थ कार्य के लिए कर छूट को लेकर बने कानून को स्पष्ट रूप से व्यापार या व्यवसाय में शामिल होने पर कर छूट देने से इनकार करने के लिए बदल दिया गया था। न्यायमूर्ति भट ने पीठ की ओर से फैसला लिखते हुए कहा कि यह स्पष्ट किया जाता है कि जीपीयू या व्यक्ति खुद को किसी भी व्यापार, वाणिज्य या व्यवसाय में संलग्न नहीं कर सकता है। वह खुद को किसी भी विचार (उपकर, या शुल्क, या किसी अन्य प्रतिफल) के संबंध में शुल्क लेकर सेवा प्रदान नहीं कर सकता है।

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