हिजाब पर खंडित फैसला…. अब बड़ी बेंच करेगी सुनवाई, फैसले तक रहेगा बैन

–26 याचिकाओं के समूह पर दोनों जजों के अपने-अपने फैसले

नई दिल्ली। कर्नाटक में हिजाब पर बैन जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर लगा प्रतिबंध हटाने से इनकार करने वाले कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर खंडित फैसला सुनाया। इस संवेदनशील मामले को प्रधान न्यायाधीश के पास भेज दिया, ताकि एक बड़ी बेंच का गठन किया जा सके।

न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाएं खारिज कर दीं, जबकि न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने उन्हें स्वीकार किया। कहा कि यह अंतत: ‘पसंद का मामला’ है। हाईकोर्ट ने प्रतिबंध हटाने से इनकार करते हुए कहा था कि हिजाब पहनना इस्लाम में अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है। पीठ की अगुवाई कर रहे न्यायमूर्ति गुप्ता ने 26 याचिकाओं के समूह पर फैसला सुनाते हुए शुरुआत में कहा, इस मामले में अलग-अलग मत हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने इस फैसले में 11 प्रश्न तैयार किए हैं और उनके जवाब याचिकाकर्ताओं के खिलाफ हैं। इस सूची में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार और अनिवार्य धार्मिक प्रथाओं के अधिकार के दायरे और गुंजाइश संबंधी प्रश्न शामिल हैं। पीठ ने खंडित फैसले के मद्देनजर निर्देश दिया कि उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली इन याचिकाओं को एक उचित वृहद पीठ के गठन के लिए प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखा जाए। न्यायमूर्ति धूलिया ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने गलत रास्ता अपनाया। उन्होंने कहा, मेरे निर्णय में मुख्य रूप से इस बात पर जोर दिया गया है कि मेरी राय में अनिवार्य धार्मिक प्रथाओं की यह पूरी अवधारणा विवाद के निस्तारण के लिए आवश्यक नहीं थी। अदालत ने इस संदर्भ में संभवत: गलत रास्ता अपनाया। यह मुख्य रूप से अनुच्छेद 19(1)(ए), इसके क्रियान्वयन और मुख्य रूप से अनुच्छेद 25(1) का सवाल था। यह अंतत: पसंद का मामला है, इससे कम या ज्यादा कुछ और नहीं।न्यायमूर्ति धूलिया कहा कि इस मामले पर फैसला करते हुए उनके दिमाग में लड़कियों की शिक्षा की बात थी। उन्होंने कहा, यह बात सभी जानते हैं कि ग्रामीण इलाकों और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में बच्चियों को पहले ही कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा, तो क्या हम उनका जीवन बेहतर बना रहे हैं, यह सवाल भी मेरे दिमाग में था।

न्यायमूर्ति गुप्ता ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि उन्होंने अपने फैसले में 11 प्रश्न तैयार किए हैं। उन्होंने ये प्रश्न पढ़कर सुनाए। इनमें ये प्रश्न भी शामिल थे कि अनुच्छेद 25 के तहत अंत:करण और धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का दायरा क्या है और संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत आवश्यक धार्मिक प्रथाओं के अधिकार का दायरा क्या है। न्यायमूर्ति गुप्ता ने प्रश्न पढ़ते हुए कहा, क्या अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार और अनुच्छेद 21 के तहत निजता का अधिकार परस्पर अलग हैं या वे एक दूसरे के पूरक हैं। उन्होंने कहा कि उनके फैसले में एक और सवाल रखा गया है कि क्या हिजाब पहनना अनिवार्य धार्मिक प्रथा माना जाता है और क्या छात्राएं स्कूल में हिजाब पहनने के अधिकार की मांग कर सकती हैं।

न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा, मेरे हिसाब से इन सभी प्रश्नों के उत्तर याचिकाकर्ताओं के खिलाफ हैं। मैं याचिकाओं को खारिज करने का प्रस्ताव रखता हूं। न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि उन्होंने राज्य सरकार के पांच फरवरी, 2022 के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसके जरिए स्कूल और कॉलेज में समानता, अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने वाले कपड़े पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। पीठ ने कहा, पीठ की अलग-अलग राय के मद्देनजर इस मामले को एक उचित पीठ के गठन के लिए प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखा जाए। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 15 मार्च को राज्य के उडुपी में गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज की मुस्लिम छात्राओं के एक वर्ग द्वारा कक्षाओं के अंदर हिजाब पहनने की अनुमति दिए जाने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था। उच्च न्यायालय ने कहा था कि हिजाब पहनना इस्लाम में अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है। उच्चतम न्यायालय में 10 दिन तक चली बहस के बाद शीर्ष अदालत ने 22 सितंबर को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था।

न्यायमूर्ति गुप्ता हाईकोर्ट के फैसले से सहमत

न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले से सहमति जताई और इस फैसले के खिलाफ याचिका दाखिल करने वाले से 11 सवाल पूछे। उन्होंने सवाल किया कि क्या छात्रों को आर्टिकल 19, 21 और 25 के तहत कपड़े चुनने का अधिकार दिया जा सकता है? अनुच्छेद 25 की सीमा क्या है? व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के अधिकार की व्याख्या किस तरह से की जाए? क्या कॉलेज छात्रों की यूनिफॉर्म पर फैसला कर सकते हैं? क्या हिजाब पहनना और इसे प्रतिबंधित करना धर्म की स्वतंत्रता का उल्लंघन है?

न्यायमूर्ति धूलिया बोले-यह चॉइस का मामला

पीठ के न्यायमूर्ति न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने कहा कि हिजाब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं, इस पर विचार की जरूरत ही नहीं थी। यह सिर्फ एक चॉइस से जुड़ा सवाल है। मेरे लिए जो सबसे ऊपर था वह लड़कियों की शिक्षा था। लड़कियों को स्कूल जाने से पहले घर का काम-काज निपटाना पड़ता है और हम ऐसा करके उनकी जिंदगी को बेहतर बना रहे हैं। यह आर्टिकल 19 और 25 से जुड़ा मामला है।

अब सुप्रीम कोर्ट में क्या होगा

न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने कहा कि यह मामला सीजेआई को भेजा जा रहा है, ताकि वे उचित निर्देश दे सकें। याचिकाकर्ता के वकील एजाज मकबूल ने कहा कि अब सीजेआई यह तय करेंगे कि इस मामले पर सुनवाई के लिए बड़ी बेंच गठित की जाए या फिर कोई और नई बेंच। इसके बाद हिजाब तक फैसला आएगा।

हिजाब पर जारी रहेगा बैन

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कर्नाटक के शिक्षा मंत्री बी नागेश ने बताया कि कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला अभी अंतरिम तौर पर लागू रहेगा। इसलिए स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब पर बैन बरकरार रहेगा।

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