y: अगर मन में किसी मंजिल को पाने की संकल्प और जज्बा हो तो यकीन मानिए कोई भी मंजिल नामुमकिन नहीं होती। अपनी-मेहनत के दम पर हमारे आस-पास के अनगिनत लोगों ने सफलता प्राप्त की है। हर साल इस देश में करोड़ों की संख्या में युवा अपने सपने को साकार करने के लिए मेहनत कर रहे होते हैं। इनमें लाखों की संख्या में युवा यूपीएससी की तैयारी कर रहे होते हैं। इनमें से हर साल सैकड़ों की संख्या में अपना सपना साकार करते हैं और परीक्षा को पास करते हैं। हालांकि, सभी के लिए सफलता आसान नहीं होती। कईयों को इसके लिए भारी संघर्ष करना होता है। ऐसे ही सफल उम्मीदवारों की कहानी हम लेकर आते हैं अपनी सक्सेस स्टोरी के माध्यम से। आज हम बात करेंगे आईएएस श्रीधन्या सुरेश की, जिनकी कहानी लोगों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है। आइए जानते हैं…
मनरेगा मजदूर थे श्रीधन्या के माता-पिता
श्रीधन्या सुरेश केरल के वायनाड जिले की रहने वाली है। यह क्षेत्र काफी मामलों में पिछड़ा हुआ है। श्रीधन्या के परिवार में उनके माता-पिता के अलावा तीन भाई-बहन भी हैं। श्रीधन्या आर्थिक रूप से बेहद कमजोर परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनके पिता दिहाड़ी मजदूर थे और बाजार में सामान बेचा करते थे। वहीं, उनकी मां भी मनरेगा के तहत मजदूरी करती थी। बचपन से ही उनका पालन काफी अभाव में हुआ था।
सरकारी स्कूल से की पढ़ाई, क्लर्क भी बनीं
श्रीधन्या सुरेश की स्कूली पढ़ाई राज्य सरकारी स्कूल से पूरी हुई है। स्कूल के बाद उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई ट जोसेफ कॉलेज से जूलॉजी में ग्रेजुएशन से की। इसके बाद उन्होंने कालीकट यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर किया। स्नातकोत्तर के बाग श्रीधन्या ने राज्य के अनुसूचित जनजाति विकास विभाग में क्लर्क के रूप में भी काम किया।
2018 में हुआ यूपीएससी में चयन
श्रीधन्या सुरेश ने साल 2016 और 2017 में यूपीएससी की परीक्षा दी थी। हालांकि, दोनों में ही उन्हें विफलता हाथ लगी। लेकिन उन्होंने यहां हिम्मत नहीं हारी। अपनी मेहनत और दृढ़संकल्प के दम पर उन्होंने साल 2018 में यूपीएससी की परीक्षा पास की और 410वीं रैंक प्राप्त कर के आईएएस बनीं। उन्होंने अपने पूरे समाज का नाम ऊंचा किया था।
इंटरव्यू के लिए दोस्तों से लिए पैसे
श्रीधन्या सुरेश की आर्थिक हालत इतनी खराब थी कि उनके पास में यूपीएससी के इंटरव्यू में शामिल होने के लिए जाने को पैसे तक नहीं थे। हालांकि, जब उनके दोस्तों को इस बात का पता चला तो उन्होंने पैसे इकट्ठा कर के श्रीधन्या की मदद की। वह केरल की पहली आदिवासी आईएएस हैं। श्रीधन्या की कहानी हमारे पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा की तरह है। यह कहानी हम बताती है कि मुश्किले चाहे कितनी भी हो, वे दृढ़संकल्प और मेहनत के सामने हार ही जाती है।

